Sunday, September 26, 2010
जिंदगी मेरे घर आना...
कितना खूबसूरत लम्हा है यह जब खुला आसमां है और तुम हो सामने बस एक इसी गाने की धुन है जुबां पर। एक पल के लिये मै ठहर सी जाती हूँ क्या यही जिंदगी है? क्या यहीं से शुरू होती है जिंदगी। क्यों मै पृथ्वी की तरह तुम्हारे इर्द-गिर्द चक्कर लगाने को ही जिंदगी मानती हूँ। कभी-कभी तो मेरी आँखे तुम्हारे दूसरी तरफ़ देख भी नही पाती। सूरज की तेज़ रोशनी हो या सुनहरी चाँदनी छिटकी को तुम्हारे चारों तरफ़ क्यों लगता है कि यह सब-कुछ तुमसे अलग नही है। तुम जो जुबां पर आप बने रहते हो मगर क्यों दिल में सिर्फ़ रहते हो तुम बनकर। तुम जानते हो तुम्हे यह बात कहना कितना मुश्किल है कि मै तुम्हे सिर्फ़ तुम कहना चाहती हूँ, क्योंकि तुम कह देना ही पर्याप्त नही है। तुम कहने भर से दिल हर बात खोल कर रख देगा तुम्हारे आगे। तुम में जो अपना पन है आप कहने में मुझे नही लगता।लेकिन शायद तुम्हे अच्छा न लगे मेरा यह सम्बोधन। फ़िर भी मै यही गाना हर रोज गुनगुनाती हूँ... खुले आसमां के नीचे....जिंदगी मेरे घर आना...जिंदगी
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विचार
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छोटी सी सुन्दर पोस्ट , जिन्दगी मेरे घर आना जिन्दगी , मेरे घर का इतना सा सीधा पता है , मेरे घर के आगे मुहब्बत लिखा है ।
ReplyDeleteधन्यवाद शारदा जी।
ReplyDeleteमेरी स्वघोषिता बहना ,अभी तक भी न हैं मैंने तुम्हे पहचाना
ReplyDeleteरक्त सम्बन्धों के इतर नहीं माना है मैंने किसी को बहना
क्योंकि कहना आसान है मगर कठिन सम्बन्धों का निभाना
खुल कर आ जाओ न सामने या फिर न मारो कभी ताना
शक तो अभी भी है कि तुम हो इक खूबसूरत सी बहाना
( इन दिनों मुझ पर कविता लिखने की चुड़ैल आ सवारी है :)
जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है |
ReplyDeleteहाँ हर इन्सान शुरूआत तो यहीं से करता है ज़िन्दगी तुम मेरे घर आना। शुभकामनायें ज़िन्दगी उम्र भर तुम्हारे घर मे रहे।
ReplyDeleteअरविंद जी,हेम जी निर्मला जी आप सभी का धन्यवाद।
ReplyDeleteअरविंद भाईसाहब, बचपन में प्रण लिया था आपने भी लिया होगा हम सब भारतीय भाई-बहन हैं(एक को छोड़ कर ऎसा भी कहा होगा) तो हुए न भाई मानो या न मानो।
ReplyDeletejanm aur mrtyu ke bich bahane wali nadi ko jindagi kahate hai nadi to jiwan dena janati hai
ReplyDeletearganikbhagyoday.blogspot.com