Saturday, October 30, 2010

अच्छा आँखे तेज कर रही है...



कभी सुना है आपने किसी छोटे से बच्चे द्वारा यह कहते हुऎ अच्छा...आँखे तेज कर रही है... सुबह-सुबह गॉर्डन मे चक्कर लगाते हुए, मै घास को बड़े ध्यान से देख रही थी। मेरे पति मुझसे कुछ दूर पर अपनी नित्य की तरह दौड़ लगा रहे थे। अचानक एक छोटा सा बच्चा जो शायद दस या ग्यारह साल का ही होगा अपने साथ आये हुए बड़े लड़के से मेरी ओर इशारा करते हुए बोला अच्छा आँखें तेज कर रही है... उसकी बात सुन कर कुछ क्षण के लिये मुझे कुछ समझ नही आया मै कुछ कहती इतने पर ही मेरे पति उसके पास आये और बोले," अभी करवाऊँ क्या तेरी भी आँखें तेज? उसका तो हाल बुरा हो गया। और मै असमंजस में पड़ गई कि कोई नन्हा सा बच्चा जो यह जानता है कि मै उसकी माँ की उम्र की हूँ, कैसे ऎसा बोल सकता है?

किन्तु यही सत्य है। दिशाविहीन बच्चे सचमुच भूल गये हैं कि माँ एक ही नही होती और वो सिर्फ़ एक की ही संतान नही हैं। आपने सुना तो होगा कि बच्चे सबके साँझे होते हैं। बच्चों में भगवान का निवास होता है। हम हमारे बच्चों के समान ही सभी बच्चों को देखते हैं। किन्तु यह सब क्या था?

क्या यह बदलते परिवेश का झटका था? या माता-पिता के संस्कार? इसे क्या कहेंगे कि एक बच्चा यह नही जानता की मै किसे क्या कह रहा हूँ। हो सकता है मै गलत हूँ क्योंकि जिस प्रकार वक्त बदला है जीने का नजरिया बदला है, शिक्षा बदली है, बच्चे यह भी जान गये की आँखें तेज करना क्या होता है।

यकीन मानिये आज अहोई अष्टमी के दिन जब अहोई माँ से सारी दुनिया के बच्चों के स्वास्थ्य की प्रार्थना की तो जरा भी ख्याल नही आया की मै बस अपने बच्चों के लिये कुछ माँगू। परन्तु यह वाकया अवश्य याद आ गया। और पूजा करते-करते मुझे उसकी बेवकूफ़ी पर हँसी आ गई। मैने चाहा की अपनी यह हँसी आप के साथ भी बाँट ही ली जाये। कहीं आप भी तो गार्डन में आँखे तेज करने का काम नही करते हैं?

नीलकमल

Wednesday, October 27, 2010

करवा-चौथ या जीवन बीमा


कल करवा-चौथ का दिन था यानि की पतियों का दिन, वैसे तो सभी यह कहते  हैं कि एक यही दिन ऎसा होता है जब पत्नी पति की पूजा करती है, आरती उतारती है।पति के लिये सारा दिन उपवास करती है।

मैने भी सुबह के साढे तीन बजे पति महोदय को उठाया और कहा उठिये जरा चाय पी लीजिये। पति देव परेशान होते हुए बोले क्या परेशानी है सोने भी नही देती। मैने झुंझलाते हुए कहा," आपको याद नही आज मेरा व्रत है, कम से कम उठ तो जाईये। पतिदेव को गुस्सा आ गया बोले रात भर सोने नही दिया कभी मेहंदी रची की नही देखो..., मेहन्दी सुख गई नींबू लगाओ... और न जाने कितने काम मुझसे करवाती रही। अब सुबह भी सोने नही दे रही हो। मुझे भी गुस्सा आ गया मैने कहा," अरे कैसे पति हो  आप? एक तो आपकी लम्बी उम्र के लिये व्रत रख रही हूँ और आप हैं कि मजे से सो रहे हैं। मेरा अहसान मानना तो दूर आप मुझे ही ताना दे रहे हैं। अरे सोचिये तो जरा हम महिलायें ही तो आपकी सलामती के लिये पूरा दिन भूखी- प्यासी रहती हैं भगवान से रिक्वेस्ट  कर आपकी उम्र बढ़ाती हैं फ़िर भी आप हमे ही कुसूरवार ठहराते है। सोचो हम औरतें न होती तो आप लोगों का क्या होता?

आखिर पतिदेव को हार माननी पड़ी । और यह लड़ाई एक नई साड़ी देकर टालनी पड़ी।

व्रत कर-कर के जान बचाने की
करती समझदारी
कहां मिलेगी तुम्हे बोलो
ये हिंदुस्तानी नारी?

Sunday, October 24, 2010

इक मच्छर आदमी को क्या बना दे?

आज एक मच्छर ने आदमी को नचा के रख दिया है। जिधर देखो आदमी कम मच्छर ज्यादा नजर आ रहे हैं। बड़ी-बड़ी कम्पनियां भी मच्छरों को मारने के नये-नये स्प्रे कोइल्स बना रही है। लेकिन मच्छर कम आदमी ज्यादा मरते नज़र आ रहे हैं। फ़िर भी मच्छरों की तादाद में कोई कमी नही आई है।


कुछ दिन पहले जब गार्डन में लैप टाप लेकर बैठी तो अचानक कान में सुन्दर ध्वनिमय संगीत सुनाई देने लगा। समझते देर न लगी की आज तो मच्छर जी मेहरबान हो गये हैं और अपनी कविता सुना रहे हैं। कुछ ही देर में मच्छर काटने लगे और संगीत ध्वनि में तीव्रता आ गई। मुझे ऎसा भी लगा था शायद ये मच्छर ब्लॉग पढ़ने आये हों। किन्तु अपने काटे जाने का ज्यादा डर था। वरना ब्लॉग पढ़वाने की भूख किसे नही होती।
ब्लॉगिंग का प्रचार करने में हम नारियां बिलकुल भी शर्म नही करती हैं। जो भी आता है चाय-नाश्ते के साथ ही कुछ कवितायें भी परोस ही देते हैं। और जब तक आने वाला मेहमान टिप्पणी करना न सीख जाये। उसे टिपप्णियों के महत्व को बताते ही रहते हैं।


मैने बहुत कोशिश की कि मच्छरों को भी ब्लॉग बनाना सीखा दूँ। लेकिन वो थे की सुनने को तैयार ही नही थे। अपना ही बैण्ड बजाये जा रहे थे। आखिरकार मैने उनसे पीछा छुड़ाने के लिये अपना ताम-झाम समेटा और कमरे की तरफ़ कदम बढ़ाया। लेकिन ये क्या सारे के सारे मच्छर अज़ीब ढंग से मेरे सिर पर गोलाकार घूम रहे थे। मुझे लगा आज तो मै शिकार होकर रहूँगी। मच्छरों की बारात देख कर ठण्ड लगने लगी। जैसे-तैसे पीछा छुडाया लेकिन आतंक इतना अधिक की लगा आज तो डेंगू होकर रहेगा। और सचमुच मच्छरों ने रंग दिखा दिया। मेरे पडौसी को काट खाया और डॆंगू फ़ैला दिया।


आप सोच रहे होंगे की मच्छर कथकली तो मेरे सिर पर कर रहे थे तो डेंगू पडौसी को क्यों हुआ? तो जवाब ये है कि मैने उन्हे बस मात्र एक कविता सुनाई थी। टिप्पणी देना तो दूर जाने किस बात पर गुस्सा खाये कि बेचारे पड़ौसी को काट आये।


क्यों एक कवि दूसरे कवि की कविता नही सुन पाता?
लगता है ब्लॉगर से तो मच्छर भी घबराता है।


नील