कभी सुना है आपने किसी छोटे से बच्चे द्वारा यह कहते हुऎ अच्छा...आँखे तेज कर रही है... सुबह-सुबह गॉर्डन मे चक्कर लगाते हुए, मै घास को बड़े ध्यान से देख रही थी। मेरे पति मुझसे कुछ दूर पर अपनी नित्य की तरह दौड़ लगा रहे थे। अचानक एक छोटा सा बच्चा जो शायद दस या ग्यारह साल का ही होगा अपने साथ आये हुए बड़े लड़के से मेरी ओर इशारा करते हुए बोला अच्छा आँखें तेज कर रही है... उसकी बात सुन कर कुछ क्षण के लिये मुझे कुछ समझ नही आया मै कुछ कहती इतने पर ही मेरे पति उसके पास आये और बोले," अभी करवाऊँ क्या तेरी भी आँखें तेज? उसका तो हाल बुरा हो गया। और मै असमंजस में पड़ गई कि कोई नन्हा सा बच्चा जो यह जानता है कि मै उसकी माँ की उम्र की हूँ, कैसे ऎसा बोल सकता है?
किन्तु यही सत्य है। दिशाविहीन बच्चे सचमुच भूल गये हैं कि माँ एक ही नही होती और वो सिर्फ़ एक की ही संतान नही हैं। आपने सुना तो होगा कि बच्चे सबके साँझे होते हैं। बच्चों में भगवान का निवास होता है। हम हमारे बच्चों के समान ही सभी बच्चों को देखते हैं। किन्तु यह सब क्या था?
क्या यह बदलते परिवेश का झटका था? या माता-पिता के संस्कार? इसे क्या कहेंगे कि एक बच्चा यह नही जानता की मै किसे क्या कह रहा हूँ। हो सकता है मै गलत हूँ क्योंकि जिस प्रकार वक्त बदला है जीने का नजरिया बदला है, शिक्षा बदली है, बच्चे यह भी जान गये की आँखें तेज करना क्या होता है।
यकीन मानिये आज अहोई अष्टमी के दिन जब अहोई माँ से सारी दुनिया के बच्चों के स्वास्थ्य की प्रार्थना की तो जरा भी ख्याल नही आया की मै बस अपने बच्चों के लिये कुछ माँगू। परन्तु यह वाकया अवश्य याद आ गया। और पूजा करते-करते मुझे उसकी बेवकूफ़ी पर हँसी आ गई। मैने चाहा की अपनी यह हँसी आप के साथ भी बाँट ही ली जाये। कहीं आप भी तो गार्डन में आँखे तेज करने का काम नही करते हैं?
नीलकमल
अफसोस होता है ऐसे भटकते बचपन को देख...
ReplyDeleteबचपन जब भटकता है तो ....
ReplyDeleteबच्चे तो बच्चे हैं उनकी बात का क्या बुरा मानना -उन्हें दुलार से सही गलत समझा दीजिये बस ..उनमें विवेक कहाँ ?
ReplyDeleteये बच्चे भी ना...।
ReplyDeletelokatantr ka kamal burha kya, bachcha kya, jawan kya sab barabar ~
ReplyDeleteइस में कुछ माँ बाप के संस्कार भी सामिल हैं| धन्यवाद|
ReplyDeleteवैसे शायद उसको पता हो कि घास पर सुबह ओस के ऊपर बिना चप्पल के चलने से आँखों की रोशनी तेज होती है .... और यही वो बच्चा कहना चाहता हो ....
ReplyDeleteये ति गंभीर मामला है।
ReplyDeleteपर हमने यह सुना है कि सुबह ओस से भींगी घास पर चलने से नेत्रज्योति बढती है (आंख तेज़ होती है!!!...) लो अभी देख रहा हूं संगीता जी भी यही कह गई हैं, अब लिख दिया है तो पोस्ट तो कर ही दूं।
संगीता जी और मनोज जी ने बिल्कुल सही कहा...
ReplyDeleteअब माफ़ भी कर दीजिये उन्हें...
मेरे ब्लॉग पर इस बार चर्चा है जरूर आएँ...लानत है ऐसे लोगों पर ....
hansi baant kar accha kiya...
ReplyDeletebachpan to jaise kho sa gaya hai,
ab log sare daanv pech seekh seedhe bade hi ho jate hain!
इससे पूर्व भी एक ऐसा ही लेख ब्लॉग पर था जिसका शीर्षक पड़कर यकीं नहीं हो रहा था परन्तु लगता है की सही था नीलकमल जी बच्चे जो भी सीखते है उसमे आस पास का माहोल और पारिवारिक परिवेश मुख्य होता है यदि हमारी या हमारे समाज की आने वाले कल और इन बच्चो के प्रति इसी तरह की पेशकश है तो ये सोचनीय विषय है !
ReplyDeletebahut hee dukhad.. aise bhatke bacchey .. kya kiya jaye... yah sochniy baat hai..
ReplyDeleteदीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाये !कभी यहाँ भी पधारे ...कहना तो पड़ेगा ................
ReplyDeleteदीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत कुछ सोचने -समझने को विवश करती हुई, पोस्ट
ReplyDeleteदीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाये
बदलते परिवेश मैं,
ReplyDeleteनिरंतर ख़त्म होते नैतिक मूल्यों के बीच,
कोई तो है जो हमें जीवित रखे है ,
जूझने के लिए प्रेरित किये है,
उसी प्रकाश पुंज की जीवन ज्योति,
हमारे ह्रदय मे सदैव दैदीप्यमान होती रहे,
यही शुभकामना!!
दीप उत्सव की बधाई...........
मैं मनोज जी और संगीता स्वरुप जी की बात से सहमत. सवेरे ओस से भीगी घास पर नंगे पाँव चलने से आँख की रोशनी बढ़ती है.लगता है,बच्चा आपसे ग़लत डांट खा गया
ReplyDeletenice ur writing
ReplyDeletenice post congrats
ReplyDeleteचर्चा में आज नई पुरानी हलचल
ReplyDeleteआपकी चर्चा
नववर्ष की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबच्चे तो बच्चे -ईश्वर का रूप!
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