Wednesday, September 29, 2010

ये प्यार था या कुछ ओर था...

उसने कहा- चल हट तू क्या जाने दिल चुराना किसे कहते हैं। जब किसी से दिल लगाया ही नही तो नजरों का चुराना भी क्या समझेगी?



उह्ह क्या बवाल है भई कोई कैसे किसी का दिल चुरा सकता है तुम तो ऎसे बोल रही हो जैसे कि दिल को पॉकेट में रख कर घूम रही थी। और आँखें डोनेट की जाती हैं महोदया चुराई नही जाती। कोई बतायें इन जनाब को भला नज़रे भी चुराई जा सकती हैं कभी।

कहने को मै अपनी सखी से न जाने क्या-क्या कह गई। परन्तु उस दिन पहली बार ऎसा अहसास हुआ की शायद वह सच कह रही है। दसवी कक्षा की बात है...

मै और मेरी सहेलियां रामकिंकर जी का प्रवचन सुनने गये। प्रवचन तो इस उम्र में क्या समझ पाते बस स्कूल वालों ने हमे वालेंटियर बना कर खड़ा कर दिया था। कुछ दूसरी स्कूल के बच्चे भी सम्मिलित थे इस आयोजन में।
उसी लम्बी कतार में दूर कही बहुत दूर एक खूबसूरत सा चेहरा लगातार कुछ पढने की कोशिश कर रहा था। मै बेखबर जान ही नही पाई लेकिन कब तक...अचानक कुछ लड़कियों ने कोहनी मारनी शुरू कर दी। ऎ देख वो कब से तुझे देख रहा है। मुझे! कौन? मैने कनखियों से उधर देखा तो लगा कहीं कोई रिश्तेदार तो नही है। लेकिन नही कोई रिश्ता ही नही था। क्यों देख रहा है?  मै एक पल उसे देख कर अपनी जगह से हट गई। किन्तु उसकी निगाहें पीछा करती रही। मै नजरें चुराने लगी। ओह्ह यह है नज़रो का चुराना अब समझी। अचानक सहेली चिल्लाई। तू तो सीख ही गई नज़रे चुराना?
दूसरे दिन मै नही आई, तीसरे दिन मेरी नजरे उसे ढूँढती रही मगर वो गायब था। मेरी सहेलियां फ़िर चहकी देख दिल तो नही चुरा ले गया।

मैने आहिस्ता से दिल को तलाशा
ओह्ह वो बस आँखों तक था
पहुँच ही न पाया दिल तक
चुराता कैसे।

20 comments:

  1. sach bilkul sach aapne bayan kiya
    arganikbhagyoday.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. .
    .
    .
    "मैने आहिस्ता से दिल को तलाशा
    ओह्ह वो बस आँखों तक था
    पहुँच ही न पाया दिल तक
    चुराता कैसे।"


    बेचारा ! पहुंचता भी कैसे ?
    आप अगले दिन गई जो नहीं थी...

    सुन्दर, पहली बार आपको पढ़ा, यकीन मानिये आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं...

    आपकी पहली पोस्ट भी देखी...

    ६. मेरा अंतिम सवाल क्या मै अपने इस चिट्ठे पर अपने मन की हर बात लिख सकती हूँ...कहीं दिल की भड़ास निकालना ही ब्लॉगिंग तो नही?

    मैं तो कहूँगा कि आप इस चिठ्ठे पर या अपनी टिप्पणियों में भी अपने मन की हर बात लिख सकती हैं... लिखनी भी चाहिये...भड़ास भी निकाल बाहर करिये... यही ब्लॉगिंग है...मेरी नजर में !

    आभार!


    ...

    ReplyDelete
  3. अच्छी अभिव्यक्ति । जो मिल गया उसी को मुक्क्दर समझ लिया…।

    ReplyDelete
  4. मैने आहिस्ता से दिल को तलाशा
    ओह्ह वो बस आँखों तक था
    पहुँच ही न पाया दिल तक
    चुराता कैसे

    ओह गज़ब की अभिव्यक्ति ....सहजता से लिखा है ...अच्छा लगा ..
    मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया

    ReplyDelete
  5. मोहतरमा किस्मत अच्छी थी आपकी - नहीं तो दिल चुराने कि खिडकी आँखों से गुजरती है.


    अच्छी प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  6. गज़ब की अभिव्यक्ति|

    ReplyDelete
  7. शुक्र मनाईये कि सस्ते में जान छूट गयी नहीं तो कितने कसमे वादे दिए लिए जाते और फिर भी मामले का निपटारा नहीं होता :)

    ReplyDelete
  8. मैने आहिस्ता से दिल को तलाशा
    ओह्ह वो बस आँखों तक था
    पहुँच ही न पाया दिल तक
    चुराता कैसे
    बहुत सुन्दर
    ब्लॉग पर इज्जत अफजाई का शुक्रिया.

    ReplyDelete
  9. अच्छा लगा आपके ब्लॉग पे आना, बहुत सुन्दर पोस्ट है ये :)

    ReplyDelete
  10. वाह भाई वाह। बड़ी बहादुरी से आपने अपने दिल की रक्षा की। बधाई आपको। लेकिन प्यार न तो आरोपित किया जा सकता है न ही खरीदा या बेंचा जा सकता है। यह तो ईश्वर का वरदान है बस कभी भी कहीं भी हो जाता है।

    ReplyDelete
  11. आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।

    ReplyDelete
  12. यूँ ही कुछ तलाशते तलाशते आपके ब्लॉग तक आ गया ! और आपके ब्लॉग ने मेरी तलाश को यहीं रोक दिया ! बहुत ही सुंदर लिखा है !

    ReplyDelete
  13. गहरी अभिव्‍यक्ति, नजर से दिल में उतरती हुई.

    ReplyDelete
  14. लगता है सभी अच्छे हैं अगर हम अच्छे हैं...
    पढ़ कर अच्छा लगा.

    ReplyDelete
  15. 5.5/10

    सुन्दर लेखन
    कभी-कभी कोई पोस्ट छोटी सी बात में कितनी बड़ी बात कह जाती है.
    ये सीधी-सच्ची-सादगी भरी पोस्ट अच्छी लगी.

    ReplyDelete
  16. कोमल, सुंदर, संवेदनशील!

    ReplyDelete
  17. कुछ पंक्तियाँ यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ:

    "आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा।
    कश्ती के मुसाफ़िर ने समुन्दर नहीं देखा।
    पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
    मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा।

    ReplyDelete

स्वागत है आपका...