Sunday, October 24, 2010

इक मच्छर आदमी को क्या बना दे?

आज एक मच्छर ने आदमी को नचा के रख दिया है। जिधर देखो आदमी कम मच्छर ज्यादा नजर आ रहे हैं। बड़ी-बड़ी कम्पनियां भी मच्छरों को मारने के नये-नये स्प्रे कोइल्स बना रही है। लेकिन मच्छर कम आदमी ज्यादा मरते नज़र आ रहे हैं। फ़िर भी मच्छरों की तादाद में कोई कमी नही आई है।


कुछ दिन पहले जब गार्डन में लैप टाप लेकर बैठी तो अचानक कान में सुन्दर ध्वनिमय संगीत सुनाई देने लगा। समझते देर न लगी की आज तो मच्छर जी मेहरबान हो गये हैं और अपनी कविता सुना रहे हैं। कुछ ही देर में मच्छर काटने लगे और संगीत ध्वनि में तीव्रता आ गई। मुझे ऎसा भी लगा था शायद ये मच्छर ब्लॉग पढ़ने आये हों। किन्तु अपने काटे जाने का ज्यादा डर था। वरना ब्लॉग पढ़वाने की भूख किसे नही होती।
ब्लॉगिंग का प्रचार करने में हम नारियां बिलकुल भी शर्म नही करती हैं। जो भी आता है चाय-नाश्ते के साथ ही कुछ कवितायें भी परोस ही देते हैं। और जब तक आने वाला मेहमान टिप्पणी करना न सीख जाये। उसे टिपप्णियों के महत्व को बताते ही रहते हैं।


मैने बहुत कोशिश की कि मच्छरों को भी ब्लॉग बनाना सीखा दूँ। लेकिन वो थे की सुनने को तैयार ही नही थे। अपना ही बैण्ड बजाये जा रहे थे। आखिरकार मैने उनसे पीछा छुड़ाने के लिये अपना ताम-झाम समेटा और कमरे की तरफ़ कदम बढ़ाया। लेकिन ये क्या सारे के सारे मच्छर अज़ीब ढंग से मेरे सिर पर गोलाकार घूम रहे थे। मुझे लगा आज तो मै शिकार होकर रहूँगी। मच्छरों की बारात देख कर ठण्ड लगने लगी। जैसे-तैसे पीछा छुडाया लेकिन आतंक इतना अधिक की लगा आज तो डेंगू होकर रहेगा। और सचमुच मच्छरों ने रंग दिखा दिया। मेरे पडौसी को काट खाया और डॆंगू फ़ैला दिया।


आप सोच रहे होंगे की मच्छर कथकली तो मेरे सिर पर कर रहे थे तो डेंगू पडौसी को क्यों हुआ? तो जवाब ये है कि मैने उन्हे बस मात्र एक कविता सुनाई थी। टिप्पणी देना तो दूर जाने किस बात पर गुस्सा खाये कि बेचारे पड़ौसी को काट आये।


क्यों एक कवि दूसरे कवि की कविता नही सुन पाता?
लगता है ब्लॉगर से तो मच्छर भी घबराता है।


नील

17 comments:

  1. 1.5/10

    बोर करने की प्रबल क्षमता है इस पोस्ट में.

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  2. आ बैल मुझे मार...:) शुक्रिया उस्ताद जी। बोर हुए तो किसी दिन आप आम भी बन ही जायेंगे।

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  3. हा,,हा,,हा,
    पहले तो मैं नहीं समझा ........ फिर समझ आया कि
    आप आम की "बौर" कह रही हैं.
    दिलचस्प

    god bless you

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  4. दिलचस्प!
    आज पहली बार आना हुआ।
    कई बातें यहां आकर अच्छी लगी।
    १. मुझे लगता है सभी अच्छे हैं अगर हम अच्छे हैं. - उत्तम विचार
    २. ब्लॉगिंग का प्रचार करने में हम नारियां बिलकुल भी शर्म नही करती हैं - खुद पर व्यंग्य - मुझे ये शैली अच्छी लगती है। दूसरे पर कीजिए तो.... कौन मुसीबत ले।
    ३. मच्छरों को भी ब्लॉग बनाना सीखा दूँ। .... ये प्रसंग किसी अन्य आलेख में आगे बढाए, मच्छरों की फ़ौज़ तो है ही, आप भी दो चारले आएं।
    ४. क्यों एक कवि दूसरे कवि की कविता नही सुन पाता?
    लगता है ब्लॉगर से तो मच्छर भी घबराता है।
    इस कविता को आगे बधाएं
    कुल मिलाकर आपके ब्लॉग, आलेख और आपकी शैली मे नयापन है।
    शुभकामनाएं।

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  5. ब्लॉगर से तो दुनिया घबराती है..मच्छर की क्या औकात!

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  6. एक नारी दूसरी नारी का रूप और एक कवि दूसरे की कविता पसंद नहीं करता ,इसी तरह मच्छर पुरुष के बजाय नारी रक्त के ज्यादा प्यासे होते हैं -अब ये जग जाहिर बाते हैं !
    बढियां यह हुआ कि अपने कोई कविता नहीं ठेल दीं .....
    लैब टॉप=लैप टाप

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  7. क्यों एक कवि दूसरे कवि की कविता नही सुन पाता?
    लगता है ब्लॉगर से तो मच्छर भी घबराता है।..........bahut khub

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. ललित जी,उस्ताद जी,मनोज जी, अरविन्द जी, समीर जी, रजनी जी, भारतिय नागरिक आप सभी का शुक्रिया।

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  10. bahut hee sundar post...maja aa gaya padhkar

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  11. स्वागत है आपका...

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