Tuesday, September 28, 2010

मै चुप रहूँगी

यह प्यारी सी बच्ची भी एक ब्लॉगर भाई की है




मै चुप ही रहूँगी। सोचा तो यही था मगर कब तक? आखिर कब तक कोई चुप रह पाता है? चुप्पी कहते हैं कि बहुत खतरनाक हो जाती है कभी-कभी। बोलता इंसान बक-बक कर सब बोल जाता है किन्तु चुप रह कर आने वाले तूफ़ान का अंदाजा लगना मुश्किल हो जाता है।
यही कहानी है एक औरत की...बचपन से जिसे चुप रहना सिखाया जाता रहा है। बात-बात पर अम्मा कहा करती थी,जोर से मत हँस,बहस मत कर,नज़रे नीची रख, मर्दों के बीच में नही औरतों की संगत में बैठ। बचपन यह सब कहाँ समझ पाता है?
मुझमें सारे के सारे उल्टे ही गुण थे, हँसना तो जोर से हँसना, बहस में कोई क्या जितेगा जब बाबा कहते थे...देखना मेरी बेटी बड़ी होकर वकील बनेगी। और मर्दों की संगत की बात तो छोड़ ही दीजिये मैने अपने छोटे भाई के फ़ेवर में इतने गली के लड़कों को पीटा की आज तक याद करते हैं....हाहाहा बेचारे आज भी नज़रें नीची कर लेते हैं।
किन्तु आज इस चुप्पी का मतलब समझ में आया । हँसी जाने कहाँ गुम हो गई।आपको मिली हो तो जरूर लौटा देना...
कई मुद्दतों से तलाश की
बाबुल की वो प्यार भरी हँसी।
माँ की दुलार भरी हँसी।
किन्तु जाने कहाँ खो गई हूँ
मै चुप क्यों हो गई हूँ?

4 comments:

  1. बस एक शब्द -मार्मिक ....

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  2. सच्ची और मार्मिक रचना|

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  3. nil kamal ji jindagi me samaj ke byawasthaye manani padti hai aur sach to yah hai har koi kanhi n khnhi chup hi hai aisa kyo ?
    arganikbhagyoday.blogspot.com

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  4. बहुत खूब! कम शब्दों में अधिक बात!

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