कहने को मै अपनी सखी से न जाने क्या-क्या कह गई। परन्तु उस दिन पहली बार ऎसा अहसास हुआ की शायद वह सच कह रही है। दसवी कक्षा की बात है...
मै और मेरी सहेलियां रामकिंकर जी का प्रवचन सुनने गये। प्रवचन तो इस उम्र में क्या समझ पाते बस स्कूल वालों ने हमे वालेंटियर बना कर खड़ा कर दिया था। कुछ दूसरी स्कूल के बच्चे भी सम्मिलित थे इस आयोजन में।
उसी लम्बी कतार में दूर कही बहुत दूर एक खूबसूरत सा चेहरा लगातार कुछ पढने की कोशिश कर रहा था। मै बेखबर जान ही नही पाई लेकिन कब तक...अचानक कुछ लड़कियों ने कोहनी मारनी शुरू कर दी। ऎ देख वो कब से तुझे देख रहा है। मुझे! कौन? मैने कनखियों से उधर देखा तो लगा कहीं कोई रिश्तेदार तो नही है। लेकिन नही कोई रिश्ता ही नही था। क्यों देख रहा है? मै एक पल उसे देख कर अपनी जगह से हट गई। किन्तु उसकी निगाहें पीछा करती रही। मै नजरें चुराने लगी। ओह्ह यह है नज़रो का चुराना अब समझी। अचानक सहेली चिल्लाई। तू तो सीख ही गई नज़रे चुराना?
दूसरे दिन मै नही आई, तीसरे दिन मेरी नजरे उसे ढूँढती रही मगर वो गायब था। मेरी सहेलियां फ़िर चहकी देख दिल तो नही चुरा ले गया।
मैने आहिस्ता से दिल को तलाशा
ओह्ह वो बस आँखों तक था
पहुँच ही न पाया दिल तक
चुराता कैसे।
sach bilkul sach aapne bayan kiya
ReplyDeletearganikbhagyoday.blogspot.com
.
ReplyDelete.
.
"मैने आहिस्ता से दिल को तलाशा
ओह्ह वो बस आँखों तक था
पहुँच ही न पाया दिल तक
चुराता कैसे।"
बेचारा ! पहुंचता भी कैसे ?
आप अगले दिन गई जो नहीं थी...
सुन्दर, पहली बार आपको पढ़ा, यकीन मानिये आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं...
आपकी पहली पोस्ट भी देखी...
६. मेरा अंतिम सवाल क्या मै अपने इस चिट्ठे पर अपने मन की हर बात लिख सकती हूँ...कहीं दिल की भड़ास निकालना ही ब्लॉगिंग तो नही?
मैं तो कहूँगा कि आप इस चिठ्ठे पर या अपनी टिप्पणियों में भी अपने मन की हर बात लिख सकती हैं... लिखनी भी चाहिये...भड़ास भी निकाल बाहर करिये... यही ब्लॉगिंग है...मेरी नजर में !
आभार!
...
अच्छी अभिव्यक्ति । जो मिल गया उसी को मुक्क्दर समझ लिया…।
ReplyDeleteमैने आहिस्ता से दिल को तलाशा
ReplyDeleteओह्ह वो बस आँखों तक था
पहुँच ही न पाया दिल तक
चुराता कैसे
ओह गज़ब की अभिव्यक्ति ....सहजता से लिखा है ...अच्छा लगा ..
मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
मोहतरमा किस्मत अच्छी थी आपकी - नहीं तो दिल चुराने कि खिडकी आँखों से गुजरती है.
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति.
गज़ब की अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteशुक्र मनाईये कि सस्ते में जान छूट गयी नहीं तो कितने कसमे वादे दिए लिए जाते और फिर भी मामले का निपटारा नहीं होता :)
ReplyDeleteमैने आहिस्ता से दिल को तलाशा
ReplyDeleteओह्ह वो बस आँखों तक था
पहुँच ही न पाया दिल तक
चुराता कैसे
बहुत सुन्दर
ब्लॉग पर इज्जत अफजाई का शुक्रिया.
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पे आना, बहुत सुन्दर पोस्ट है ये :)
ReplyDeleteवाह भाई वाह। बड़ी बहादुरी से आपने अपने दिल की रक्षा की। बधाई आपको। लेकिन प्यार न तो आरोपित किया जा सकता है न ही खरीदा या बेंचा जा सकता है। यह तो ईश्वर का वरदान है बस कभी भी कहीं भी हो जाता है।
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteयूँ ही कुछ तलाशते तलाशते आपके ब्लॉग तक आ गया ! और आपके ब्लॉग ने मेरी तलाश को यहीं रोक दिया ! बहुत ही सुंदर लिखा है !
ReplyDeletesunder hai
ReplyDeletemere blog mein is baar...
ReplyDeleteसुनहरी यादें ....
गहरी अभिव्यक्ति, नजर से दिल में उतरती हुई.
ReplyDeleteलगता है सभी अच्छे हैं अगर हम अच्छे हैं...
ReplyDeleteपढ़ कर अच्छा लगा.
ईमानदार दिल .....
ReplyDelete5.5/10
ReplyDeleteसुन्दर लेखन
कभी-कभी कोई पोस्ट छोटी सी बात में कितनी बड़ी बात कह जाती है.
ये सीधी-सच्ची-सादगी भरी पोस्ट अच्छी लगी.
कोमल, सुंदर, संवेदनशील!
ReplyDeleteकुछ पंक्तियाँ यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ:
ReplyDelete"आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा।
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुन्दर नहीं देखा।
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा।